...तो आज यूं मुंह न ताकने पड़तेः 16 साल में तैयार नहीं कर पाए 1000 बिस्तर का अस्पताल
मप्र की राजनीति के केंद्र ग्वालियर-चंबल संभाग से प्रदेश सरकार में आधा दर्जन से अधिक केंद्रीय मंत्री हैं। एक केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा सांसद भी ग्वालियर से हैं, लेकिन कोरोना की सेकंड वेव ने शहर की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की पोल खोल दी है। मरीजों को अस्पतालों में बेड तक उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। हालत यह है कि सामाजिक संस्थाएं और कुछ समाजसेवी अपने खर्चे पर कोविड सेंटर खोल रहे हैं। यह स्थिति तब है, जबकि शहर में पिछले 16 वर्षों से 1000 बिस्तर के अस्पताल का निर्माण प्रस्तावित है, लेकिन राजनीतिक खींचातानी के चलते इसका निर्माण अब भी पूरा नहीं हो पाया है।
एक हजार बिस्तर के अस्पताल के निर्माण को लेकर कांग्रेस और भाजपा में जमकर राजनीति हुई। इसका अब तक तीन बार भूमिपूजन हो चुका है। वर्ष 2005 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने भूमिपूजन किया। इसके बाद वर्ष 2009 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भूमिपूजन किया। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आने पर 2019 में फिर सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भूमिपूजन किया। इसका विरोध किए जाने पर मुरैना सांसद अनूप मिश्रा समेत कई भाजपाइयों को गिरफ्तार किया गया। कुल 338 करोड़ रुपए के इस प्रोजेक्ट को लेकर क्रेडिट लूटने की होड़ तो लगी रही, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि 16 साल बाद भी यह अस्पताल शुरू नहीं हो पाया है। सरकार ने इसमें से 140 करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत की है। यदि ये मंत्री इच्छाशक्ति दिखाकर इस प्रोजेक्ट को प्राथमिकता पर रखते, तो आज जो बुरे हालात बने हुए हैं उससे जनता को राहत मिलती।
यह है प्लान
एक हजार बिस्तर के अस्पताल का निर्माण 7.75 हैक्टेयर भूमि पर होगा। इसके लिए 338 करोड़ रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति मिली है। अस्पताल का भवन आधुनिकतम डिजाइन में होगा। अस्पताल में वह सभी सुविधाएं उपलब्ध होंगी, जो चिकित्सा के लिहाज से आवश्यक हैं।
सी ब्लॉक में होंगे 568 बेड
जानकारी के अनुसार प्रथम चरण में ए और सी ब्लॉक में धर्मशाला का निर्माण होगा। सी-ब्लॉक में 568 बेड और ए-ब्लॉक में 260 बेड रहेंगे। प्रशासनिक भवन में सभी चिकित्सा विभागों के पंजीयन का कार्य होगा। वहीं से मरीज सीधे संबंधित विभाग में जा सकेंगे। सी ब्लॉक में 150 बेड का प्राइवेट वार्ड भी बनाया जाएगा।
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