क्या है भगवान शिव पर कांवर से जल चढ़ाने के पीछे का रहस्य ?
आज महाशिवरात्रि का पावन पर्व है। हिन्दू कैलेंडर (Panchang) के अनुसार, फाल्गुन माह (Phalguna Month) के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि मनाई जाती है। महाशिवरात्रि को मनाने के पीछे कुछ मान्यताएं है। शिवपुराण के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन भगवान सदाशिव सबसे पहले शिवलिंग स्वरुप में प्रकट हुए थे। माना जाता है कि इस दिन ही भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग प्रकाट्य हुआ था। उस दिन फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी। इस वजह से हर साल इस दिन महाशिवरात्रि मनाते हैं दूसरी मान्यता है कि, शिव और शक्ति का महामिलन महाशिवरात्रि को ही हुआ था। भगवान शिव और शक्ति एक दूसरे से विवाह बंधन में बंधे थे। वैरागी शिव ने वैराग्य छोड़कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश था। यही वजह है कि कई स्थानों पर महाशिवरात्रि के अवसर पर शिव बारात निकाली जाती है और शिवभक्त शिव-पार्वती का विवाह संपन्न कराते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शिव और माता पार्वती का विवाह कराने से वैवाहिक जीवन की समस्याएं दूर होती हैं तथा दांपत्य जीवन खुशहाल होता है।
महाशिवरात्रि पर काँवर भरकर चढ़ाने की प्रथा है। इस दिन या इससे पूर्व आपको कांधे पर कांवर लिए भोले बाबा के कई भक्त रास्ते में मिल जाएंगे। इनका एक मात्र उद्देश्य होता है, कांवर में भरा जल लेकर भगवान शिव का जल अभिषेक करना। इसके लिए शिव भक्त कांधे पर कांवर लिए मिलों पैदल चल कर शिवालय तक आते हैं। ऐसे में हर किसी के मन में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि कांवर का ऐसा क्या महत्व है जो भक्त इतना कष्ट उठाकर भोलेनाथ का अभिषेक करने के लिए कांवर लाते हैं। पुराणों के अनुसार भगवान शिवशंकर कांवर से गंगाजल चढ़ाने से जितना प्रसन्न होते हैं उतना प्रसन्न धूप, दीप, नैवेद्य या फूल चढ़ाने से भी नहीं होते। कांवर और शिव भक्ति के संबंध में यह भी कहा गया है कि कांधे पर कांवर रखकर बोल बम का नारा लगाते हुए चलने से हर कदम के साथ एक अश्वेध यज्ञ करने का पुण्य प्राप्त होता है। कांवर में जल लेकर भगवान शिव का अभिषेक करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस परंपरा की कड़ी में भगवान राम का नाम भी शामिल है। आनंद रामायण में भी इस बात का उल्लेख मिलता है कि भगवान श्री राम ने कांवरिया बनकर सुल्तानगंज से जल लिया और देवघर स्थित बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया। भगवान शिव के परम भक्त लंकापति रावण ने भी शिव जी को कांवर चढ़ाया था। शिव जी को कांवर चढ़ाने वालों में भूतनाथ भैरव का भी नाम आता है। कांवर लेकर शिव जी को अर्पित करना एक प्रकार की तपस्या है और हर तपस्या के कुछ नियम होते हैं। कांवरियों के लिए भी शास्त्रों में कुछ नियम बताए गए हैं। शास्त्र कहता है कि कांवड़ियों को सात्विक और शुद्घ आहार लेना चाहिए। कांवर को कभी भी भूमि पर नहीं रखें। आचरण और विचार शुद्घ रखें। निंदा से बचें और किसी को कटु शब्द नहीं कहें।कांवर यात्रा के दौरान काम-क्रोध से बचें और भगवान शिव का ध्यान करते रहें।
जय भोलेनाथ
ॐ नमः शिवाय
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